कानपुर के घाटमपुर स्थित एक मदरसे में पढ़ने वाले 14 बच्चे ईद की छुट्टी में अपने घर बिहार गए थे। 24 अप्रैल को सभी बच्चे वापस मदरसा जाने के लिए कानपुर सेंट्रल पर उतरे। सभी के पास वैध टिकट, पहचानपत्र आदि जरूरी दस्तावेज थे। रेलवे स्टेशन पर रेलवे सुरक्षा बल के उप निरीक्षक अमित द्विवेदी व अन्य सुरक्षा कर्मियों ने उन बच्चों को रोक लिया। मदरसा प्रशासन द्वारा सारे दस्तावेज दिखाने के बावजूद बच्चों की मुस्लिम वेशभूषा देखकर दोपहर से रात 11 बजे तक भूखा-प्यासा रोके रखा। बच्चों को छोड़ने की बात कहकर देर रात सभी को बाल सुधार गृह भेज दिया गया। सात दिन तक मदरसा छात्र आपराधिक प्रवृत्ति के बच्चों के साथ रहे, इससे बच्चों के मौलिक अधिकारों का भी हनन हुआ।
इस मामले में 15 मई को राज्य अल्पसंख्यक आयोग की पहली सुनवाई थी। जिसमें रेलवे सुरक्षा बल की तरफ से कोई नहीं आया। लगातार सुनवाई के साथ आयोग ने सभी दस्तावेजों , तथ्यों और प्रकरण का अध्ययन किया। जांच के बाद पाया गया कि वैध दस्तावेज होने के बावजूद रेलवे सुरक्षा बल ने बच्चों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया।आयोग ने कहा कि बच्चों को जबरन बाल सुधार गृह भेजना उत्पीड़न है, क्योंंकि वहां उन्ही बच्चों को भेजा जाता है जो अपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं या नशे की हालत में पाए जाते हैं। किसी जायज कारण के रेलवे द्वारा की गई इस कार्रवाई को भेदभावपूर्ण मानते हुए आयोग ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
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