वाराणसी। धरोहर संरक्षण सेवा संगठन के आयाम केसरिया भारत के तत्वाधान में महंगी शिक्षा से उत्पन्न समाजिक बुराईयों के लिए जिम्मेदार महंगी शिक्षा को खत्म करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार को सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारी वाराणसी को संगठन के प्रमुख संयोजक कृष्णानन्द पाण्डेय के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों के साथ दिया गया साथ ही जिलाधिकारी पोर्टिको में एक सभा हुई ,वक्ताओं में संगठन के प्रमुख संयोजक कृष्णा नन्द पाण्डेय ने कहा
भारत जैसे विशाल, विविधतापूर्ण और प्राचीन संस्कृति वाले देश में आज शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है। शिक्षा का उद्देश्य जहाँ समाज को सुसंस्कृत, समभावी और आत्मनिर्भर बनाना था, वहीं आज यह असमानता, आर्थिक बोझ और सामाजिक विभाजन का कारण बन गई है। इस विकट समस्या के समाधान के लिए “एक देश, एक बोर्ड, एक फीस, एक पाठ्यक्रम” जैसी क्रांतिकारी पहल की आवश्यकता है।
आज हमारे देश में एक ही कक्षा के विद्यार्थी अलग-अलग बोर्ड, अलग-अलग पाठ्यक्रम, और अलग-अलग फीस ढांचे में पढ़ रहे हैं। आज श्रीकृष्ण और सुदामा एक ही विद्यालय में नहीं रह गए। एक समृद्ध परिवार का बच्चा आईसीएसई / सीबीएसई बोर्ड के अंतरराष्ट्रीय स्कूल में पढ़ रहा है और एक सामान्य आय वाला बच्चा सरकारी या क्षेत्रीय बोर्ड में पढ़ रहा इससे सामाजिक समरसता का विघटन हो रहा है।
जब एक ही परिवार में दो भाईयों के बच्चों को अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाने की मजबूरी होती है, तो पारिवारिक मनभेद उत्पन्न होते हैं। आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति बेहतर शिक्षा में निवेश करता है, वहीं कमजोर भाई पीछे छूट जाता है। इससे रिश्तों में खटास आती है पारिवारिक तनाव और विघटन का महंगी शिक्षा ही प्रमुख कारण है।
सनातन समाज का युवा जब परिवार बढ़ाने की सोचता है, तो शिक्षा का खर्च उसे पीछे खीचता है। अधिकांश युवा एक या अधिकतम दो बच्चों की योजना बनाते हैं जिसका प्रमुख कारण महंगी शिक्षा है। यह एक गंभीर सामाजिक और सांस्कृतिक संकट का संकेत है। शिक्षा को बोझ बनने से रोकना अब अनिवार्य है।
गौरीश सिंह ने कहा महंगे निजी विद्यालयों की फीस, दाखिला प्रक्रिया और अलग-अलग बोडों की प्रतिस्पर्धा ने गाँव-गाँव से प्रतिभाओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। वहीं सरकारी विद्यालयों को नजरअंदाज कर बंद किया जा रहा है, जिससे शिक्षा का विकेंद्रीकरण और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
सारिका दूबे ने कहा एक देश, एक बोर्ड, एक फीस, एक पाठ्यक्रमः इस विकराल स्थिति का समाधान एक सरल, परंतु दूरदर्शी नीति में छुपा है।
एक ही बोर्ड: जिससे शिक्षा की गुणवत्ता, मूल्यांकन और प्रमाण पत्र सबके लिए समान हों।
अविनाश आनन्द ने कहा सभी छात्रों को समान ज्ञान और मूल्य प्राप्त हो।
जिससे आर्थिक स्थिति से परे हर बच्चा समान शिक्षा प्राप्त कर सके।
भारतीय संस्कृति, भाषा, और नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा से समाज फिर से आत्मनिर्भर और समरस बन सकेगा।
गौरव मिश्र ने कहा यदि कक्षा 10वीं तक सरकारी और निजी विद्यालयों में समान पाठ्यक्रम और समान फीस होगी, तो माता-पिता सरकारी विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित होंगे। इससे शिक्षा का निजीकरण रुकेगा, सरकारी संसाधनों का सदुपयोग होगा, और समाज में शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पुनः स्थापित होगा। “एक देश, एक बोर्ड, एक फीस, एक पाठ्यक्रम” केवल एक नारा नहीं, बल्कि यह शैक्षणिक समानता, सामाजिक समरसता, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नींव है।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से,सतीश पाण्डेय,
उपेंद्र सिंह, रमाकान्त पाण्डेय,प्रियंवदा मिश्र,हरीशचन्द्र चौबे, चंद्र देव पटेल, अजय मिश्र,विनोद वेणवंशी,अमित सिंह, विपिन सिंह,सोनू गोंड, पंचम गुप्ता,विनीत दुबे,शुभम् पाण्डेय सहित सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे ।

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